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Sunday, 17 February 2019
राजस्थान के लोक देवता - बाबा रामदेव
Tuesday, 2 October 2018
NCF 2005 , Teaching method for RPSC 2nd grade
लेटिन भाषा के शब्द currere से Curriculum या पाठ्यचर्या शब्द की उत्पत्ति मानी जाती हैं । जिसका अर्थ है रेस कोर्स या घुड़ दौड़ का मैदान ।
पाठ्यचर्या या पाठ्यक्रम लक्ष्य प्राप्ति के लिए निर्धारित मार्ग व निर्धारित समय प्रदान करते हैं
Q. निम्न में से किस व्यक्ति ने पाठ्यक्रम को कलाकार के हाथों का साधन कहां है
Ans. कनिंगम
Q. "पाठ्यक्रम समस्त अनुभवों का समूह है जिसे विद्यार्थी अनेक क्रियाओं के द्वारा प्राप्त करता है"
Ans. कोठारी आयोग
Q. पाठ्यक्रम निर्माण की प्रक्रिया के चरणों को क्रमबद्धता से जमाईऐ ।
Ans. 1. लक्ष्य या उद्देश्य
2. अधिगम अनुभव का चयन
3. विषय वस्तु का चयन
4. अधिगम अनुभव तथा विषय वस्तु का एकीकरण व संगठन
5. मूल्यांकन
● NCF 2005 ,NCERT की देन है। जिसे वर्ष 2005 में पाठ्यचर्या में सुधारों के लिए लागु किया गया।
● NCF समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर यशपाल थे जिन्होंने विज्ञान और गणित शिक्षण से संबंधित पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम में व्यापक सुधार किए।
● NCF में कुल 5 अध्याय या क्षेत्र हैं ।
● NCF में कोर कमेटी की संख्या 21 हैं।
● NCF का आदर्श वाक्य "शिक्षा बिना बोझ " या "learning without burden " हैं।
● NCF की प्रस्तावना रविन्द्र नाथ टैगोर के निबन्ध सभ्यता और प्रगति से ली गई हैं।
● वर्तमान में RTE 2009 तथा CCE 2009 को मुख्य रूप से आधार NCF के द्वारा प्रदान किया गया।
★ NCF के सुझाव -
1. रटने की प्रवृत्ति से मुक्ति ।
2. गतिविधि आधारित शिक्षण को महत्व देना ।
3. समान स्तर का पाठ्यक्रम लागू करना।
4. बालक का सर्वांगीण विकास करना ।
5. ज्ञान को व्यवहारिक जीवन से जोड़ना ।
6. गणित के माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक व नैतिक मूल्यों की स्थापना करना ।
7. महिला शिक्षा को बढ़ावा देना ।
8. पाठ्यक्रम के माध्यम से सहशैक्षणिक गतिविधियों में बालक का विकास करना ।
9. परीक्षाओं का मनोवैज्ञानिक दबाव कम करना।
10. शिक्षा बिना बोझ की अवधारणा सार्थक करना ।
11. गणित विषय को रुचिकर, सरल और बोधगम्य बनाना
Wednesday, 15 August 2018
वायुदाब व जलवायु वर्गीकरण | राजस्थान GK | RPSC 1st & 2nd grade and other exams
वायुदाब व जलवायु वर्गीकरण-
वायुदाब-
- सर्वाधिक वायुदाब "सागरतल" पर पाया जाता हैं ।
समदाब रेखां -
- 1 वर्ग इंच क्षेत्रफल पर 14.7 पॉण्ड का दाब होता हैं ।
- राजस्थान में जुलाई माह का वायुदाब व मिलिबर रेखाएँ ->
◆ राजस्थान की जलवायु -
- राजस्थान में कर्क रेंखा डूंगरपुर के दक्षिणी भाग को छूती हुई बाँसवाड़ा के लगभग मध्य से गुजरती हैं ।
- डूँगरपुर का दक्षिणी भाग व बाँसवाड़ा उष्ण कटिबंध में शामिल है ।
- राजस्थान का अधिकांश भाग कर्क रेंखा के उत्तर में स्थित है ,यह शीतोष्ण कटिबंध में शामिल किया जाता हैं ।
- राजस्थान में दिन गर्म एवं रातें ठंडी होती है क्योंकि राजस्थान की प्रकृति रेतीली है ।
- राजस्थान में सर्दियों में सर्दी अधिक तथा गर्मियों में गर्मी अधिक पड़ती है क्योंकि राजस्थान समुद्र से दूर है ।
- यहाँ "समुद्री हवाओं" का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता है ।
- राजस्थान में महाद्वपीय/विषम/उष्ण कटिबंधीय जलवायु देखने को मिलती है।
- राजस्थान की जलवायु के निर्धारण में उस स्थान की औसत वर्षा ,औसत तापमान एवं वनस्पति का अध्यन किया जाता है ।
- राजस्थान को 5 जलवायु प्रदेशो में बांटा गया है ।
- सबसे बड़ा जलवायु प्रदेश - अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
- सबसे छोटा जलवायु प्रदेश - अति आद्र जलवायु प्रदेश
सामान्य जलवायु वर्गीकरण
1. शुष्क जलवायु प्रदेश -
2. अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश -
बबूल, रोहिड़ा, ऑक आदि ।
जालोर, झुंझुनू, नागौर
3. उप-आद्र जलवायु प्रदेश -
बबुल , खेर, आवंला आदि ।
नागौर, भीलवाड़ा, राजसमंद ।
4. आद्र जलवायु प्रदेश -
5. अति आद्र जलवायु प्रदेश -
डूँगरपुर, प्रतापगढ़, माउन्ट आबू,
उदयपुर ।
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण -
- कोपेन एक जर्मन जलवायुवेता थे जिन्होंने अपना जलवायु वर्गीकरण 1936 में किया था ।
- कोपेन ने वनस्पति , वर्षा व तापमान को आधार मानकर अपना जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया।
Friday, 15 June 2018
आभूषण/Ornaments for Rpsc 1st ,2nd grade,LDC,Patwari, Rajasthan culture gk
पुरुषों द्वारा धारण किये जाने वाले आभूषण -
- सिर पर धारण करने वाले आभूषणो को " चूंडारत्न " कहा जाता है ।
- कान - मुरकियाँ , कुण्डल, झाले, लोंग, छेलकड़ी ।
- दांत - चूंप (रखन)
- गले - बलेबड़ा , मोहनमाला , रामनामी , मोहरन ।
- बाजू - कड़ा ।
- अंगुलियाँ - अँगूठी , बीटी , मूंदड़ी, अरसी ।
- पैर - कडा।
- कीमती नगों से युक्त गले में ताबीज के रूप में पहने जाने वाला आभूषण - तिमणिया/ मादलिया
- वह आभूषण जो कानों के चारों और पहना जाता है - कर्णफूल ।
- टांगों पर सजावटी आभूषण है। - हिमरामैन
स्त्रियों द्वारा पहने जाने वाले आभूषण -
- सिर --- राखड़ी , टिकला , बोरबंद , मेंमद , फीणी , मांग , टिका ,सकाळी , शीशफूल ,दामनी ,बोर, तावित ।
- कान --- कर्णफूल , सुरलिया , पति , लटकन , झुमकियाँ , एरन , बाली , पीपली , पन्ना , अंगोठ्या , टॉप्स , जमेला, टोकरियां , मोर , फवर ।
- नाक --- लोंग , नथ , बाली , चूनी , लटकन , कांटा ।
- दाँत --- चूंप (रत्वन) रखन ।
- गले --- चन्दन हरि , बजन्टी , खूंगाली , तिमणियाँ , ठुस्सी , जंजीर झालर , हंसली , कण्ठी , पंचाकली , पंचकड़ी , मटर माला , मंगलसूत्र , हार , बडा , मोहरन , मंडली , हंसहार , चन्द्रहार , मोहनमाला , हालरो , तुलसी बजही , पीत , कंठमाला , हाकर ।
- बाजू --- बजुबंध , गजरा , अणत ,द्टडा , तकया , चूडली , पुंपिय बाह्ल्ला , हारपान , नवरत्न , फुंदना ।
- हाथ / कलाई -- चुड़ा , कडा , हथफूल , गोखरू , कंगन , गजरा , डोफरु , डाकनी , बंगड़ी, पुंचिया , चूड़ियाँ , नोगरी , चोंट , ककण , कांकनी , मौखड़ी ।
- अँगुली --- बीटी , मुंदडी , अँगुरी अरसी , छल्ला , दामणा , छडा
- कमर --- करघनी ,सटका , कणकती , जंजीर ,तागड़ी , कंडोर ।
- पैर --- पायल , पायजेब , टणका , नुपुर , पेंझनिया , जोट , टोडा , टांका ,झांझट , तोडिया , घूंघर, आंवल , छलने , छड़ , नेवरी , आँवला , जोधपुरी , जोड , हिरमा मैन , लंगर ।
- पैर की उंगलियाँ --- बिछुड़ियाँ , फोलरियां , चुटकियाँ , पगपान , गौर ।
- धातु मोती या पन्ने से बना वह आभूषण जो साफे पर आगे की और बांधने वाला पतले पहै जैसा होता है ।
Saturday, 5 May 2018
राजस्थान के भौगोलिक व प्राचीन नाम for RPSC 1st & 2nd Grade
Wednesday, 25 April 2018
राजस्थान की सीमा रेंखा for RPSC 1ST व 2ND grede exam
- राजस्थान की कुल स्थलीय सीमा की लम्बाई -- 5920 किलोमीटर
- राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा या रेडक्लिफ की लम्बाई -- 1070 किलोमीटर।
- राजस्थान की अंतर्राज्यीय सीमा की लम्बाई -- 4850 किलोमीटर
* रेडक्लिफ से भारत के 4 राज्य स्पर्ष करते है। क्रमशः उत्तर से दक्षिण -----
- रेडक्लिफ सीमा रेंखा :--
- भारत - पाकिस्तान के मध्य
- निर्धारित - 1947
- 1. जम्मू-कश्मीर - 1216 km (36.73%)
- 2. पंजाब - 514 km (15.52%)
- 3. राजस्थान - 1070 km (32.32%)
- 4. गुजरात - 510 km (15.40%)
- श्रीगंगानगर - 210 km (19.62%)
- बीकानेर - 168 km। (15.70%)
- जैसलमेर - 464 km (43.36%)
- बाड़मेर। -- 228 km। (21.30%)
* राजस्थान की रेडक्लिफ सीमा रेंखा ---
- राजस्थान की कुल स्थलीय सीमा रेंखा का 18.07% हैं।
- राजस्थान की अंतर्राज्यीय सीमा रेंखा का 22.06% है।
- गठन - पुना
- BRO सीमावृति जिलों में सड़क बनाने का कार्य करता है ।
Saturday, 21 April 2018
राजस्थान : अवस्थिति एवम् विस्तार for RPSC,SSC,RAILWAY, PATWARI EXAMS
राजस्थान : अवस्थिति एवम् विस्तार
अक्षांश रेखाएँ :-
- सभी अक्षांश रेखाएँ काल्पनिक व् कृत्रिम होती है ।
- अक्षांश रेखाएँ ग्लोब पर पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व की और खींची जाती है
- 0° अक्षांश रेंखा (भूमध्य रेंखा ,विषुवत रेंखा) सम्पूर्ण ग्लोब को दो बराबर हिस्सों उत्तरी गोलार्द्ध व् दक्षिणी गोलार्द्ध में बाँट देती हैं ।
- ग्लोब पर सभी अक्षांश रेंखाएँ भूमध्य रेंखा के सामानांतर खींची हुई है ।
- ग्लोब पर किन्ही दो अक्षांशों के बीच की दुरी प्रत्येक स्थान पर बराबर होती है । -- 111.13 Km
- भूमध्य रेंखा की लंबाई सर्वाधिक है अतः इसे वृहद् वृत्त (ग्रेट सर्कल) के नाम से जाना जाता है ।
- भू मध्य रेंखा से ध्रुवों की और जाने पर अक्षांश रेंखाओं की लंबाई कम होती जाती हैं ।
- दो अक्षांशों के बीच का क्षेत्र कटिबन्ध (zone) कहलाता है ।
- निम्न अक्षांशों (भूमध्य रेंखीय क्षेत्र ) पर उच्च तापमान तथा उच्च अक्षांशों (ध्रुवीय क्षेत्र)पर निम्न तापमान होता हैं ।
देशान्तर रेखाएँ :-
- ग्लोब पर सभी देशान्तर रेखायें काल्पनिक व कृत्रिम होती है ।
- यह उत्तरी ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव से बाहर की तरफ से मिलाती हैं ।
- सभी देशान्तर रेंखाओं की लंबाई समान होती है ।
- भू मध्य रेंखा पर दो देशान्तरों के मध्य की दुरी 111.32 km सर्वाधिक हैं ।
- भूमध्य रेंखा से ध्रुवों की और जाने पर दो देशान्तरों के बीच की दुरी कम होती जाती हैं ।
- देशान्तर रेंखाओं का उध्येश्य -->
- समय की गणना करना व अवस्थिति का निर्धारण करना ।
- 1°देशान्तर = 4 मिनट अर्थात् दो देशान्तरों के मध्य 4 मिनट का अंतर होता है।
- राजस्थान/भारत उत्तरी- पूर्वी गोलार्द्ध में स्थित हैं ।
- राजस्थान भारत के उत्तर - पश्चिम दिशा में स्थित है ।
- राजस्थान की अक्षांशीय स्थिति ---> 23°3' N से 30°12'
- राजस्थान का अक्षांशीय विस्तार -- 30°12' - 23°30' = 7°9'
- राजस्थान की उत्तरी सीमा तथा कर्क रेंखा के मध्य अक्षांशीय विस्तार - 30°12' - 23°30' = 6°42'
- कर्क रेंखा तथा राजस्थान की दक्षिणी सीमा के मध्य अक्षांशीय विस्तार = 32°30' - 23°3' = 27'
- राजस्थान का देशांतरीय स्थिति -- 69°30' E से 78°17' E
- राजस्थान का देशांतरीय विस्तार -- 78°17' - 69°30' E = 8°47'
- राजस्थान में सबसे पहले सूर्योदय व सूर्यास्त --> सिलोन गाँव (धौलपुर)
- राजस्थान में सबसे बाद में सूर्योदय व सूर्यास्त --> कटरा गाँव (जैसलमेर)
- राजस्थान के पूर्व एवं पश्चिम के मध्य समय का अंतर 35 मिनट 8 सेकेंड या 35 मिनट 2 अंश या लगभग 9° या 36 मिनट ।
- राजस्थान का विस्तार उत्तर में कोणा गाँव गंगानगर से लेकर दक्षिण में बोरकुंडा गाँव बांसवाड़ा तक 826 km / 7°9' हैं ।
- जबकि पूव में सिलोन गाँव धौलपुर से लेकर पश्चिम में कटरा गाँव जैसलमेर तक 869 कम/ 8°47' हैं ।
4. इंग्लैंड से 2 गुना
तथा नार्वे ,पोलेंड व इटली से अधिक क्षेत्रीय विस्तार रखता है ।
Friday, 30 March 2018
राजस्थान की सभ्यताएँ - गणेश्वर सभ्यता
उपनाम :-
- यहाँ तांबा निकाला जाता था तथा शुध्द व् औजार बनाने के लिए बैराठ जाता था ।
- यहाँ से लगभग 2800 ई. पू. के अवशेष प्राप्त हुऐ है।
- यहाँ से पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
- मकान पत्थरों से निर्मित थे तथा सुरक्षा के लिए नगर के चारों ओर पत्थरों का परकोटा व पत्थरों का बांध बना हुआ था
- इस सभ्यता का विस्तार सीकर, झुंझुनूं ,जयपुर व भरतपुर तक था ।
- यहाँ से प्राप्त अधिकांश उपकरण ताम्बे से निर्मित थे। तथा तांबा अन्य स्थानों पर भी भेजा जाता था ।
- यहाँ से ताम्र निर्मित कुल्हाड़ी मिली है। शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, आभुषण, सुईयां मिले हैं।
- यहाँ से कपिसवर्णि (मटमैला रंग) मृदभांड प्राप्त हुये है , जो छल्लेदार है ।
- यहाँ से मिट्टी का कलश , प्याले , हांड़ी, आदि बर्तन प्राप्त हुये है ।
- यहाँ से मछली पकड़ने के कांटे प्राप्त हुये है अर्थात यह लोग मांसाहारी थे तथा मछली खाने के शौकीन थे ।
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं- बैराठ सभ्यता , RPSC 1ST व 2ND grede
- प्राचीन काल में भारत में 16 महाजनपद थे। राजस्थान से संबंधित 2 महाजनद - (1) मत्स्य महाजनपद - राजस्थानी (विराट नगर) इसी विराट नगर को आधुनिक बैराठ के नाम से जाना जाता है।
- सूरशेन महाजनपद - राजधानी (मथुरा)।
- बैराठ में उत्खनन कार्य निम्न पहाड़ियों पर किया गया। इन पहाड़ियों को स्थानीय भाषा में डूँगरी कहा गया है।
- महाभारत काल का संबंध बैराठ से रहा है। पाण्डवों ने अज्ञातवास का कुछ समय बैराठ में व्यतीत किया। भीमलत तालाब का संबंध भी पाण्डवों से ही माना जाता है। भीम पहाड़ी से पाषाण के शस्त्र बनाने के कारखाने प्राप्त हुए है।
- बैराठ से बड़ी मात्रा में शैल चित्र के प्रमाण प्राप्त हुए है। इसलिए बैराठ को "प्राचीन युग की चित्रशाला भी कहा गया है।"
- बैराठ की बीजक पहाड़ी से कैप्टन बर्ट के द्वारा मौर्य शासक अशोक का भाब्रु का शिलालेख खोजा। इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि अशोक बौद्ध धर्म की अनुयायी था।
- शिलालेख की भाषा- प्राकृत एवं लिपि - बाह्मी है।
- कार्लाइल के द्वारा मौर्य शासक अशोक का एक अन्य शिलालेख खोजा गया। वर्तमान में यह दोनों शिलालेख कलकत्ता संग्राहलय में सुरक्षित है।
- बौद्ध धर्म से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए 634 ई. में चीनी यात्री हेवनसांग बैराठ ह्वेनसांग को यहाँ पर बौद्ध मठ के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यह साक्ष्य भग्नावेश अवस्था (जर्जर अवस्था) में थे। इस अवस्था के लिए ह्वेनसांग हूण शासक मिहिर कुल को जिम्मेदार मानता है।
- ह्वेनसांग की पुस्तक का नाम सी-यू-की है।
- यहाँ से एक सूती कपड़े में बंधी हुई 36 मुद्राएँ प्राप्त हुई है। इनमें से 28 मुद्राएँ प्राप्त हुई है। इनमें से 28 मुद्राएँ इण्डोग्रीक शासकों की व 8 मुद्राएँ आहत व पंचमार्क मुद्राए थी।
- जयपुर के शासक रामसिंह द्वितीय के समय बैराठ में खुदाई कार्य करवाया गया। जिसमें एक स्वर्ण मंजूषा (पेटी) प्राप्त हुई है। इस मंजूषा में महात्मा बुद्ध के अवशेष मिले है।
- मुगल शासक अकबर ने बैराठ में सिक्के ढालने की टकसाल का निर्माण करवाया है। इस टकसाल में जहाँगीर व शाँहजहा ने सिक्कों का निर्माण करवाया है।
- अकबर व आमेर के शासक भारमल की प्रथम भेंट बैराठ नामक स्थान पर ही हुई।
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ - आहड़ की सभ्यता (RPSC 1st व 2nd Grede exam)
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ - आहड़ की सभ्यता
समय - 1900 ईसा पुर्व से 1200 ईसा पुर्व
काल - ताम्र पाषाण काल
सबसे अधिक उत्खनन करवाया 1961 में एच. डी.(हंसमुख धीरजलाल) सांकलिया ने।आहड़ का प्राचीन नाम - ताम्रवती10 या 11 शताब्दी में इसे आघाटपुर/आघाट दुर्ग कहते थे।स्थानीय नाम - धुलकोरविशेषताभवन निर्माण में पत्थर का प्रयोगउत्खनन में अनाज पिसने की चक्की मिली है।कपड़ों में छपाई किये जाने वाले छापे के साक्ष्य मिले हैं।छः तांबे के सिक्के मिले हैं।यहां से एक भवन में छः मिट्टी के चुल्हे मिले हैं।मिट्टी के बर्तन व तांबे के आभुषण मिले है।
- इस सभ्यता को - बनास संस्कृति, ताम्रवति नगरी, आधारपुर, धूलकोट, आद्याटपुर संस्कृति आदि अन्य नाम से भी जाना जाता है।
- आहड़ में तांबे के साथ-साथ पाषाण के उपकरण भी मिले है। इसलिए इस सभ्यता को ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता कहा जाता है।
- यह सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी यहाँ के लोगों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि व पशुपालन था। यहाँ के प्रमुख उद्योग- तांबे के औजार का निर्माण।
- यहाँ से नारी की मूर्ति, तांबे की चूड़ियाँ, छल्ले व मनके मिले हैं।
- एक मकान में 4 व 6 चूल्हें के प्रमाण प्राप्त हुए है, जो संयुक्त परिवार को इंगित करता है।
- यहाँ से प्राप्त मृदभाण्डों का रंग लाल-काला, काला व लाल था।
- यहाँ ताँबे की 6 मुद्राएँ मिली है। एक मुद्रा के ऊपर यूनान के देवता अपोलो का चित्र मिला है। यह मुद्रा प्रथम शताब्दी ई. पू. से तीसरी शताब्दी ई. पू. की मानी जाती है।
- आहड़ में शवों को आभूषण सहित दफनाते थे एवं शवों का सिर उत्तर दिशा में रखकर दफनाया जाता था।
Tuesday, 27 March 2018
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ - कालीबंगा की सभ्यता
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
1. कालीबंगा की सभ्यता :-
1. कालीबंगा सिंधु सभ्यता का एक नगर था । जिसके निर्माता द्रविड़ माने जाते है।
Thursday, 12 October 2017
राजस्थान की जलवायु
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक - अक्षांशीय स्थिती, समुद्रतल से दुरी, समुद्र तल से ऊंचाई, अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि।
राजस्थान की जलवायु कि प्रमुख विशेषताएं -
शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानता
अपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षा
वर्षा का अनायस वितरण
अधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक
वर्षा की परिर्वतनशीलता एवं न्यूनता के कारण सुखा एवं अकाल कि स्थिती अधिक होना।
राजस्थान कर्क रेखा के उत्तर दिशा में स्थित है। अतः राज्य उपोष्ण कटिबंध में स्थित है। केवल डुंगरपुर और बांसवाड़ा जिले का कुछ हिस्सा उष्ण कटिबंध में स्थित है।
अरावली पर्वत श्रेणीयों ने जलवायु कि दृष्टि से राजस्थान को दो भागों में विभक्त कर दिया है। अरावली पर्वत श्रेणीयां मानसुनी हवाओं के चलने कि दिशाओं के अनुरूप होने के कारण मार्ग में बाधक नहीं बन पाती अतः मानसुनी पवनें सीधी निकल जाति है और वर्षा नहीं करा पाती। इस प्रकार पश्चिमी क्षेत्र अरावली का दृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण अल्प वर्षा प्राप्त करताह है।
जब कर्क रेखा पर सुर्य सीधा चमकता है तो इसकी किरणें बांसवाड़ा पर सीधी व गंगानगर जिले पर तिरछी पड़ती है। राजस्थान का औसतन वार्षिक तापमान 37 डिग्री से 38 डिग्री सेंटीग्रेड है।
राजस्थान को जलवायु की दृष्टि से पांच भागों में बांटा है।
शुष्क जलवायु प्रदेश(0-20 सेमी.)
अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश(20-40 सेमी.)
उपआर्द्र जलवायु प्रदेश(40-60 सेमी.)
आर्द्र जलवायु प्रदेश(60-80 सेमी.)
अति आर्द्र जलवायु प्रदेश(80-100 सेमी.)
1. शुष्क प्रदेश
क्षेत्र - जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, दक्षिणी गंगानगर तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग। औसत वर्षा - 0-20 सेमी.।
2. अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश
क्षेत्र - चुरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, द. बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालौर, सीकर,नागौर व झुझुनू का पश्चिमी भाग।
औसत वर्षा - 20-40 सेमी.।
3. उपआर्द्ध जलवायु प्रदेश
क्षेत्र - अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर, नागौर व झुझुनू का पूर्वी भाग तथा टोंक, भीलवाड़ा व सिरोही का उत्तरी-पश्चिमी भाग।
औसत वर्षा - 40-60 सेमी.।
4. आर्द्र जलवायु प्रदेश
क्षेत्र - भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बुंदी, सवाईमाधोपुर, उ.पू. उदयपुर, द.पू. टोंक तथा चित्तौड़गढ़।
औसत वर्षा - 60-80 सेमी.।
5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
क्षेत्र - द.पू. कोटा, बारां, झालावाड़, बांसवाडा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, द.पू. उदयपुर तथा माउण्ट आबू क्षेत्र।
औसत वर्षा - 60-80 सेमी.।
तथ्य
राजस्थान के सबसे गर्म महिने मई - जुन है तथा ठण्डे महिने दिसम्बर - जनवरी है।
राजस्थान का सबसे गर्म व ठण्डा जिला - चुरू
राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर पश्चिमी क्षेत्र में रहता है।
राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला जिला -जैसलमेर
राजस्थान में वर्षा का औसत 57 सेमी. है जिसका वितरण 10 से 100 सेमी. के बीच होता है। वर्षा का असमान वितरण अपर्याप्त और अनिश्चित मात्रा हि राजस्थान में हर वर्ष सुखे व अकाल का कारण बनती है।
राजस्थान में वर्षा की मात्रा दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर घटती है। अरब सागरीय मानसुन हवाओं से राज्य के दक्षिण व दक्षिण पूर्वी जिलों में पर्याप्त वर्षा हो जाती है।
राज्य में होने वाली वर्षा की कुल मात्रा का 34 प्रतिशत जुलाई माह में, 33 प्रतिशत अगस्त माह में होती है।
जिला स्तर पर सर्वाधिक वर्षा - झालावाड़(100 सेमी.)
जिला स्तर पर न्यूनतम वर्षा - जैसलमेर(10 सेमी.)
राजस्थान में वर्षा होने वाले दिनों की औसत संख्या 29 है।
वर्षा के दिनों की सर्वाधिक संख्या - झालावाड़(40 दिन), बांसवाड़ा(38 दिन)
वर्षा के दिनों की न्यूनतम संख्या - जैसलमेेर(5 दिन)
राजस्थान का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान - माउण्ट आबु(120-140 सेमी.) है यहीं पर वर्षा के सर्वाधिक दिन(48 दिन) मिलते हैं।
वर्षा के दिनों की संख्या उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ती है।
राजस्थान में सबसे कम आर्द्रता - अप्रैल माह में
राजस्थान मे सबसे अधिक आर्द्रता - अगस्त माह में
राजस्थान में सबसे सम तापमान - अक्टुबर माह में रहता है।
सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर) 5 सेमी.
राजस्थान को 50 सेमी. रेखा दो भागों में बांटती है। 50 सेमी. वर्षा रेखा की उत्तर-पश्चिम में कम होती है। जबकि दक्षिण पूर्व में वर्षा अधिक होती है।
यह 50 सेमी. मानक रेखा अरावली पर्वत माला को माना जाता है।
राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला जिला झालावाड़ तथा न्यूनतम जिला जैसलमेर है। राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला स्थान माउण्ट आबू तथा कम आर्द्रता फलौदी(जोधपुर) है।
राजस्थान में सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला महिना मार्च-अप्रैल है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में होती है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला जिला जयपुर है।
राजस्थान में हवाऐं पाय पश्चिम व दक्षिण पश्चिम की ओर चलती है।
हवाओं की सर्वाधिक गति - जून माह
हवाओं की मंद गति - नवम्बर माह
ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम क्षेत्र क्षेत्र का वायुदाब पूर्वी क्षेत्र से कम होता है।
ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की तरफ से गर्म हवाऐं चलती है जिन्हें लू कहते है। इस लू के कारण यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब की पूर्ती हेतु दुसरे क्षेत्र से (उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से) तेजी से हवा उठकर आती है जो अपने साथ धुल व मिट्टी उठाकर ले आती है इसे ही आंधी कहते हैं।
आंधियों की सर्वाधिक संख्या - श्रीगंगानगर(27 दिन)
आंधियों की न्यूनतम संख्या - झालावाड़ (3 दिन)
राजस्थान के उत्तरी भागों में धुल भरी आधियां जुन माह में और दक्षिणी भागों में मई माह में आति है।
राजस्थान में पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में तुफान(आंधी + वर्षा) अधिक आते है।
आर्द्रता
वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते है। आपेक्षिक आर्द्रता मार्च-अप्रैल में सबसे कम व जुलाई-अगस्त में सर्वाधिक होती है।
लू
मरूस्थलीय भाग में चलने वाली शुष्क व अति गर्म हवाएं लू कहलाती है।
समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है। इसके घटने की यह सामान्य दर 165 मी. की ऊंचाई पर 1 डिग्री से.ग्रे. है।
राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग से दक्षिणी-पुर्वी की ओर तापमान में कमी दृष्टि गोचर होती है।
डा.ब्लादीमीर कोपेन, ट्रिवार्था, थार्नेवेट के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार राजस्थान को 4 जलवायु प्रदेशों में बांटा गया।
Aw उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश
BShw अर्द्ध शुष्क कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
BWhw उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
Cwgउप आर्द्र जलवायु प्रदेश
राजस्थान को कृषि की दृष्टि से निम्न लिखित दस जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है।
शुष्क पश्चिमी मैदानी
सिंचित उत्तरी पश्चिमी मैदानी
शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदानी
अंन्त प्रवाही
लुनी बेसिन
पूर्वी मैदानी(भरतपुर, धौलपुर, करौली जिले)
अर्द्र शुष्क जलवायु प्रदेश
उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
आर्द्र जलवायु प्रदेश
अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
राजस्थान में जलवायु का अध्ययन करने पर तीन प्रकार की ऋतुएं पाई जाती हैः-
ग्रीष्म ऋतु: (मार्च से मध्य जून तक)
वर्षा ऋतु : (मध्य जून से सितम्बर तक)
शीत ऋतु : (नवम्बर से फरवरी तक)
ग्रीष्म ऋतु
राजस्थान में मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु होती है। इसमें मई व जून के महीने में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है। अधिक गर्मी के वायु मे नमी समाप्त हो जाती है। परिणाम स्वरूप वायु हल्की होकर उपर चली जाती है। अतः राजस्थान में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है परिणामस्वरूप उच्च वायुदाब से वायु निम्न वायुदाब की और तेजगति से आती है इससे गर्मियों में आंधियों का प्रवाह बना रहता है।
वर्षा ऋतु
राजस्थान में मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है।
राजस्थान में 3 प्रकार के मानसूनों से वर्षा होती है।
1. बंगाल की खाड़ी का मानसून
यह मानसून राजस्थान में पूर्वी दिशा से प्रवेश करता है। पूर्वी दिशा से प्रवेश करने के कारण मानसूनी हवाओं को पूरवइयां के नाम से जाना जाता है यह मानसून राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा करवाता है इस मानसून से राजस्थान के उत्तरी, उत्तरी-पूर्वी, दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में वर्षा होती है।
2. अरब सागर का मानसून
यह मानसून राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है यह मानसून राजस्थान में अधिक वर्षा नहीं कर पाता क्योंकि यह अरावली पर्वतमाला के समान्तर निकल जाता है। राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व कि ओर है यदि राज्य में अरावली का विस्तार उत्तरी-पश्चिमी से दक्षिणी-पूर्व कि ओर होता तो राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में वर्षा होती।
राजस्थान में सर्वप्रथम अरबसागर का मानसून प्रवेश करता है
3. भूमध्यसागरीय मानसून
यह मानसून राजस्थान में पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है। पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने के कारण इस मानसून को पश्चिमी विक्षोभों का मानसून के उपनाम से जाना जाता है। इस मानसून से राजस्थान में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में वर्षा होती है। यह मानसून मुख्यतः सर्दीयों में वर्षा करता है सर्दियों में होने वाली वर्षा को स्थानीय भाषा में मावठ कहते हैं यह वर्षा गेहुं की फसल के लिए सर्वाधिक लाभदायक होती है। इन वर्षा कि बूदों को गोल्डन ड्रोप्स या सोने कि बुंद के उप नाम से जाना जाता है।
शीत ऋतु
राजस्थान में नम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इन चार महीनों में जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है।शीत ऋतु में भूमध्यसागर में उठने वाले चक्रवातों के कारण राजस्थान के उतरी पश्चिमी भाग में वर्षा होती है। जिसे "मावट/मावठ" कहा जाता है। यह वर्षा माघ महीने में होती है। शीतकालीन वर्षा मावट को - गोल्डन ड्रोप (अमृत बूदे) भी कहा जाता है। यह रवि की फसल के लिए लाभदायक है।
राज्य में हवाएं प्राय पश्चिम और उतर-पश्चिम की ओर चलती है।
वर्षा
राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून हवाओं से होती है तथा दुसरा स्थान बंगाल की खाड़ी का मानसून, तीसरा स्थान अरबसागर के मानसून, अन्तिम स्थान भूमध्यसागर के मानसून का है।
आंधियों के नाम
उत्तर की ओर से आने वाली - उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ
दक्षिण की ओर से आने वाली - लकाऊ
पूर्व की ओर से आने वाली - पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुणी
पश्चिम की ओर से आने वाली - पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।
अन्य
उत्तर-पूर्व के मध्य से - संजेरी
पूर्व-दक्षिण के मध्य से - चीर/चील
दक्षिण-पश्चिम के मध्य से - समंदरी/समुन्द्री
उत्तर-पश्चिम के मध्य से - सूर्या
दैनिक गति/घुर्णन गति
पृथ्वी अपने अक्ष पर 23 1/2 डिग्री झुकी हुई है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व 1610 किमी./घण्टा की चाल से 23 घण्टे 56 मिनट और 4 सेकण्ड में एक चक्र पुरा करती है। इस गति को घुर्णन गति या दैनिक गति कहते हैं इसी के कारण दिन रात होते हैं।
वार्षिक गति/परिक्रमण गति
पृथ्वी को सूर्य कि परिक्रमा करने में 365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट 46 सैकण्ड लगते हैं इसे पृथ्वी की वार्षिक गति या परिक्रमण गति कहते हैं। इसमें लगने वाले समय को सौर वर्ष कहा जाता है। पृथ्वी पर ऋतु परिर्वतन, इसकी अक्ष पर झुके होने के कारण तथा सूर्य के सापेक्ष इसकी स्थिति में परिवर्तन यानि वार्षिक गति के कारण होती है। वार्षिक गति के कारण पृथ्वी पर दिन रात छोटे बड़े होते हैं।
पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 मार्च एवम् 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं फलस्वरूप सम्पूर्ण पृथ्वी पर रात-दिन की अवधि बराबर होती है।
घुर्णन गति&परिक्रमण गति
विषुव
जब सुर्य की किरणें भुमध्य रेखा प सीधी पड़ती है तो इस स्थिति को विषुव कहा जाता है। वर्ष में दो विषुव होते हैं।
21 मार्च को बसन्त विषुव तथा 23 सितम्बर को शरद विषुव होते हैं
आयन
23 1/20 उत्तरी अक्षांश से 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश के मध्य का भु-भाग जहां वर्ष में कभी न कभी सुर्य की किरणें सीधी चमकती है आयन कहलाता है यह दो होते हैं।
उत्तरी आयन(उत्तरायण) - 0 अक्षांश से 23 1/20 उत्तरी अक्षांश के मध्य।
दक्षीण आयन(दक्षिणायन) - 0 अक्षांश से 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश के मध्य।
आयनान्त
जहां आयन का अन्त होता है। यह दो होते हैं
उत्तरीआयन का अन्त(उत्तरयणान्त) - 23 1/20 उत्तरी अक्षांश/कर्क रेखा पर 21 जुन को उत्तरी आयन का अन्त होता है।
दक्षिणी आयन का अन्त - 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश/मकर रेखा पर 22 दिसम्बर को दक्षिणाअन्त होता है।
पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् रहती है फलस्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े व रातें छोटी एवम् ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में सुर्य की किरणें तीरछी पड़ने के कारण दिन छोटे रातें बड़ी व शरद ऋतु होती है।
तथ्य
उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 21 जुन
दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 21 जुन
उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 21 जुन
दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 21 जुन
पृथ्वी के परिक्रमण काल में 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर सुर्य की किरणें लम्बवत् रहती है फलस्वरूप दक्षिण गोलार्द्ध में दिन बड़े, रातें छोटी एवम् ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में सुर्य कि किरणें तीरछी पड़ने के कारण दिन छोटे, रातें बड़ी व शरद ऋतु होती है।
तथ्य
दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 22 दिसम्बर
उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 22 दिसम्बर
दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 22 दिसम्बर
उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 22 दिसम्बर
कटिबन्ध
कोई भी दो अक्षांश के मध्य का भु-भाग कटिबंध कहलाता है।
गोर
कोई भी दो देशान्तर के मध्य का भु-भाग गोर कहलाता है।
भारत दो कटिबन्धों में स्थित है।
उष्ण कटिबंध और शीतोष्ण कटिबंध
राजस्थान उष्ण कटिबंध के निकट वास्तव में उपोष्ण कटिबंध में स्थित है।
मानसून
मानसून शब्द की उत्पति अरबी भाषा के मौसिन शब्द से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ ऋतु विशेष में हवाओं की दिशाएं होता है।
गीष्मकालीन/दक्षिणी पश्चिमी मानसून
गर्मियों में जब उत्तरी गोलार्द्ध में सूय्र की किरणें सीधी पड़ती है। तो यहां निम्न वायुदाब क्षेत्र बनता है। जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में सुर्य की किरणें तीरछी पड़ने के कारण शीत ऋतु होती है और वायुदाब उच्च रहता है। इसलिए हवाऐं दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध की ओर चलती है।
भारत की स्थिति प्रायद्वीपीय होने के कारण दक्षिण पश्चिम से आने वाली यह मानसूनी पवनें दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है।
1. अरब सागरीय शाखा 2. बंगाल की खाड़ी शाखा
भारत में सर्वप्रथम मानसून की अरब सागरीय शाखा सक्रिय होती है। औसतन 1 जुन को मालाबार तट केरल पर ग्रीष्म कालीन मानसून की अरब सागरीय शाखा सक्रिय होती है।
नोट
भारत में ग्रीष्म कालीन मानसून सर्वप्रथम अण्डमान निकोबार द्वीपसमुह(ग्रेट निकोबार, इंदिरा प्वांइट) पर सक्रिय होता है।
राजस्थान में सर्वप्रथम ग्रीष्मकालीन मानसून की अरब सागरीय शाखा ही सक्रिय होती है।
भारत एवम् राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से होती है।
शीतकालीन मानसून से कोरोमण्डल तट तमिलनाडू में हि वर्षा होती है। शीतकालीन मानसून से सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला देश - चीन।
तथ्य
विश्व का सबसे गर्म स्थान - अल-अजीजिया(लिबिया) सहारा मरूस्थल
भारत का सबसे गर्म राज्य - राजस्थान
भारत का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)
राजस्थान का सबसे गर्म जिला - चुरू
राजस्थान का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)
विश्व का सबसे ठण्डा स्थान - बखोयांस(रूस)
भारत का सबसे ठण्डा राज्य - जम्मू-कश्मीर
भारता का सबसे ठण्डा स्थान - लोह(-46)
राजस्थान का सबसे ठण्डा जिला - चुरू
राजस्थान का सबसे ठण्डा स्थान - माउण्ट आबू(सिरोही)
विश्व का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय) भारत
भारत का सबसे आर्द्र राज्य - केरल
भारत का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय)
राजस्थान का सबसे आर्द्र जिला - झालावाड़
राजस्थान का सबसे आर्द्र स्थान - माउण्ट आबु
विश्व का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)
भारत का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)
भारत का सबसे वर्षा वाला राज्य - केरल
राजस्थान का सबसे वर्षा वाल स्थान - माउण्ट आबू
राजस्थान का सबसे वर्षा वाला जिला - झालावाड़
विश्व का सबसे शुष्क स्थान - वखौयांस
भारत का सबसे शुष्क राज्य - राजस्थान
भारत का सबसे शुष्क स्थान - लेह(जम्मु-कश्मीर)
राजस्थान का सबसे शुष्क जिला - जैसलमेर
राजस्थान का सबसे शुष्क स्थान - सम(जैसलमेर) और फलौद(जोधपुर)
विश्व में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - बखौयांस
भारत में सबसे कम वर्षा वाला राज्य - पंजाब
भारत में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - लेह
राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला जिला - जैसलमेर
राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर)
भारत का सर्वाधिक तापान्तर वाला राज्य - राजस्थान
राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(वार्षिक) - चुरू
राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(दैनिक) - जैसलमेर
राजस्थान का वनस्पति रहित क्षेत्र - सम(जैसलमेर)
साइबेरिया ठण्डी हवा एवं हिमालय हिमपात के कारण राजस्थान में जो शीत लहर चलती है वह कहलाती है - जाड़ा
गर्मीयों में थार के मरूस्थल में चलने वाली गर्म पवनें - लू
राजस्थान में सर्वाधिक धुल भरी आधियां चलती है - गंगानर में
राजस्थान में पाला - दक्षिणी तथा दक्षिणी पूर्वी भागों में अधिक ठण्ड के कारण पाला पड़ता है।
दक्षिण राजस्थान में तेज हवाओं के साथ जो मुसलाधार वर्षा होती है - चक्रवाती वर्षा
राजस्थान में मानसून का प्रवेश द्वार - झालावाड़ और बांसवाड़ा
राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा की विषमता वाला जिला - बाड़मेर और जैसलमेर
राजस्थान में वर्षा की सबसे कम विषमता वाला जिला -बांसवाड़ा
21 जून को राजस्थान के किस जिले में सूर्य की किरणे सीधी पड़ती है
22 दिसम्बर को राजस्थान के किस जिले को सुर्य की किरणें तीरछी पड़ती है - श्री गंगानगर
राजस्थान की जलवायु है - उपोष्ण कटिबंधीय
मावठ
सर्दीयों में पश्चिमी विक्षोभ/भुमध्य सागरिय विक्षोप के कारण भारत में उतरी मैदानी क्षेत्र में जो वर्षा होती है उसे मावठ कहते हैं।
मावठ का प्रमुख कारण - जेटस्ट्रीम
जेटस्ट्रीम - सम्पूर्ण पृथ्वी पर पश्चिम से पूर्व कि ओर क्षोभमण्डल में चलने वाली पवनें।
मावठ रबी की फसल के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। इसलिए इसे गोल्डन ड्राप्स या स्वर्णीम बुंदें कहा जाता है।
महत्वपुर्ण तथ्य
नाॅर्वेस्टर - छोटा नागपुर का पठार पर ग्रीष्म काल में चलने वाली पवनें नाॅर्वेस्टर कहलाती है। यह बिहार एवं झारखण्ड राज्य को प्रभावित करती है।
जब नाॅर्वेस्टर पवनें पूर्व की ओर आगे बढ़ कर पश्चिम बंगाल राज्य में पहुंचती है तो इन्हें काल वैशाली कहा जाता है। तथा जब यही पवनें पूर्व की ओर आगे पहुंच कर असम राज्य में पहुंचती है तो यहां 50 सेमी. वर्षा होती है। यह वर्षा चाय की खेती के लिए अत्यंत उपयोगी होती है इसलिए इसे चाय वर्षा या टी. शावर कहा जाता है।
मैंगो शावर - तमिलनाडू, केरल एवम् आन्ध्रप्रदेश राज्यों में मानसुन पूर्व जो वर्षा होती है जिससे यहां की आम की फसलें पकती है वह वर्षा मैंगो शाॅवर कहलाती है।
चैरी ब्लाॅस्म - कर्नाटक राज्य में मानसून पूर्व जो वर्षा होती है जो कि यहां की कहवा की फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है चैरी ब्लाॅस्म या फुलों की बौछार कहलाती है।
मानसून की विभंगता - मानसून के द्वारा किसी एक स्थान पर वर्षा हो जाने तथा उसी स्थान पर होने वाली अगली वर्षा के मध्य का समय अनिश्चित होता है उसे ही मानसून की विभंगता कहा जाता है।
मानसून का फटना - दक्षिण भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान केरल के मालाबार तट पर तेज हवाओं एवम् बिजली की चमक के साथ बादल की तेज गर्जना के साथ जो मानसून की प्रथम मुसलाधार वर्षा होती है उसे मानसून का फटना कहा जाता है।
वृष्टि प्रदेश एवं वृष्टि छाया प्रदेश वृष्टि प्रदेश एवं वृष्टि छाया प्रदेश
अल-नीनो - यह एक मर्ग जल धारा है जो कि दक्षिण अमेरिका महाद्विप के पश्चिम में प्रशान्त महासागर में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान सक्रिय होती है इससे भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है। और भारत एवम् पड़ौसी देशों में अल्पवृष्टि एवम् सुखा की स्थिति पैदा हो जाती है।
ला-नीनो - यह एक ठण्डी जल धारा है जो कि आस्टेªलिया यह महाद्वीप के उत्तर-पूर्व में अल-नीनों के विपरित उत्पन्न होती है इससे भारतीय मानसून की शक्ति बढ़ जाती है और भारत तथा पड़ौसी देशों में अतिवृष्टि की स्थिति पैदा हो जाती है।
उपसौर और अपसौर
उपसौर - सुर्य और पृथ्वी की बीच न्युन्तम दुरी(1470 लाख किमी.) की घटना 3 जनवरी को होती है उसे उपसौर कहते हैं।
उपसौर और अपसौर
अपसौर - सुर्य और पृथ्वी के बीच की अधिकतम दुरी(1510 लाख किमी.) की घटना जो 4 जुलाई को होती है उसे अपसौर कहते हैं।



















