Tuesday, 27 March 2018

राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ - कालीबंगा की सभ्यता

       

                      राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ

1. कालीबंगा की सभ्यता :-

                              स्थान     -  हनुमानगढ़ (राजस्थान)
                    नदी       -  घग्घर नदी (प्राचीन नाम - सरस्वती/दृषद्वति)
                    खोज     -  अमलानंद घोष (सन् 1951- 53 /1952)
                    उत्खनन -    सन् 1961- 69 में
                                   1.  डॉ. B.V. लाल
                                   2.  डॉ. बी.के. थापर
                                   3.  डॉ. एम. डी. खरे
                              काल/समय :-   2300-1750 BC./ईं. पू
                                          वर्तमान से 4318 वर्ष पहले/पूर्व
   उपनाम :-     सिंधु सभ्यता की तीसरी राजधानी- डॉ. दसरथ शर्मा के अनुसार
   कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ :-  काली चूड़ियाँ
                                                    



विशेषतायें :-

1.  कालीबंगा सिंधु सभ्यता  का एक नगर था । जिसके निर्माता द्रविड़ माने जाते      है।

2.  यह आद्य युगीन सभ्यता है । तथा ताम्र पाषाण के अंतर्गत आती है ।
3.  यह एक कांस्य युगीन सभ्यता हैं ।यहाँ समाज मातृसत्तात्मक था ।
4.  सिंधु सभ्यता की प्रमुख विशेषता नगर नियोजन प्रणाली थी । जिसमें सड़कें        चोड़ी  जो एक दूसरे को समकोण पर काटती थी । जिसे ग्रीड पद्दति/चौपड़         पैटर्न कहा जाता है ।
5.  वर्तमान भारत का जयपुर व चंडीगढ़ नगर इसी ग्रीड / चौपड़ पैटर्न पर               आधारित है ।
6.  कालीबंगा की खुदाई का कार्य 5 चरणों में किया गया -
      1,2, चरण में  - प्राक् हड़प्पा सभ्यता - 5000 वर्ष पूर्व की - ग्राम्य
      3,4,5 चरण में - हड़प्पा सभ्यता - 4300 वर्ष पूर्व - नगरीय 
7.  जूते हुये खेत व एक साथ दो फसलें उगाने के प्रमाण प्राक् हड़प्पा सभ्यता से       संबंधित हैं ।
8.  कालीबंगा से प्राप्त गढ़ी क्षेत्र (राजभवन) व नगर क्षेत्र दोनों अलग-अलग             परकोटे से घिरे हुए थे ।
9.  कालीबंगा से प्राप्त भवन कच्ची ईंटो से निर्मित थे जो धुप में पकाई गई थी।10. जल निकासी के लिए नालियों की व्यवस्था थी जो पक्की ईंटो व लकड़ी की       बनी होती थी ।
11. यहाँ से काली चूड़ियों के टुकड़े, तंदूरनुमा चूले, अग्निवेदियाँ तथा मकानों में         कवेलू व सीढ़ियाँ भी प्राप्त हुई हैं ।
12. यहाँ से सतरंज व चौसठ खेल की मोहरें ,हाथी दाँत की कंघी ,ऊँट की हड्डियां        व भूकंप के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
13 . यहाँ से अंडाकार कब्रें व युग्म शवदान प्राप्त हुए हैं ।


14. यहाँ से कपास के अवशेष प्राप्त हुए है जिसे यूनानी भाषा में सिंडन कहा            जाता हैं ।
15 . यहाँ से मेसोपोटामियां (ईराक) की बेलनाकार मोहरें प्राप्त हुई हैं, अर्थात            इनका व्यापार सुमेरियन वासियों के साथ था ।
16. यहाँ से 9 वर्षीय बालक की छिद्रित खोपड़ी प्राप्त हुई है जो शल्य चिकित्सा          का प्रमाण हैं ।
17.  यहाँ से वृषभाकृति की ताम्र प्रतिमा प्राप्त हुई है जो धातु प्रतिमा का                   प्राचीनतम उदहारण हैं ।जो राजस्थान की प्राचीनतम प्रतिमा हैं ।

18. यहाँ से प्राप्त मुद्रा पर व्याघ्र (शेर) का चित्र अंकित है जो शेरखड़ी या पक्की        मिट्टी से निर्मित थे ।
19. संस्कृत साहित्य में कालीबंगा को "बहुधान्यकटक" कहा गया हैं तथा यहाँ से        जौ व गेहूँ के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
20. यहाँ से प्राप्त मृदभांडों पर सिंधु लिपि के प्रमाण है जिसे आज दिन तक पढ़ा        नहीं गया । यह भाव चित्राक्षर लिपि हैं ,जो दायें से बायें लिखी जाती हैं ।
21. डॉ. बी. वी. लाल ने सिंधुलिपि को "ब्रुस्टोफेदम" नाम दिया ।

Note- 

1 . गिलूंड (राजसमंद) से सिंधु लिपि के प्रमाण प्राप्त हुए हैं ।
2.  बरोर गाँव गंगानगर से हड़प्पा सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुये हैं ।
3. सोथी बीकानेर को कालीबंगा प्रथम कहा जाता है ।
4. पीलीबंगा (हनुमानगढ़) से हडप्पा सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
5. हल ही में हनुमानगढ़ जिले की भादरा तहसील के करनपुरा से कालीबंगा के        समकालीन अवशेष प्राप्त हुये हैं ।




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