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Friday, 30 March 2018

राजस्थान की सभ्यताएँ - गणेश्वर सभ्यता


गणेश्वर सभ्यता

जिला - सीकर, नीम का थाना - सहसील
नदी - कांतली नदी के किनारे
समय - 2800 ईसा पुर्व
काल - ताम्रपाषाण काल (ताम्रपाषाण युगीन सभ्यता की जननी)
खोजकत्र्ता/उत्खनन कत्र्ता - 1977 आर. सी.(रत्न चन्द्र) अग्रवाल

उपनाम :- 

1.   ताम्र सभ्यताओं की जननी
2.   ताम्र संचयी सभ्यता
3.   पुरातत्व का पुष्कर

विशेषताएं :-


  • यहाँ तांबा निकाला जाता था तथा शुध्द व् औजार बनाने के लिए बैराठ जाता था ।
  • यहाँ से लगभग 2800 ई. पू.  के अवशेष प्राप्त हुऐ है।
  • यहाँ से पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
  • मकान पत्थरों से निर्मित थे तथा सुरक्षा के लिए नगर के चारों ओर पत्थरों का परकोटा व पत्थरों का बांध बना हुआ था 
  • इस सभ्यता का विस्तार सीकर, झुंझुनूं ,जयपुर व भरतपुर तक था ।
  • यहाँ से प्राप्त अधिकांश उपकरण ताम्बे से निर्मित थे। तथा तांबा अन्य स्थानों पर भी भेजा जाता था ।
  • यहाँ से ताम्र निर्मित कुल्हाड़ी मिली है। शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, आभुषण, सुईयां मिले हैं।
  • यहाँ से कपिसवर्णि (मटमैला रंग) मृदभांड प्राप्त हुये है , जो छल्लेदार है ।
  • यहाँ से मिट्टी का कलश , प्याले , हांड़ी, आदि बर्तन प्राप्त हुये है ।
  • यहाँ से मछली पकड़ने के कांटे प्राप्त हुये है अर्थात यह लोग मांसाहारी थे तथा मछली खाने के शौकीन थे ।


राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं- बैराठ सभ्यता , RPSC 1ST व 2ND grede

बैराठ सभ्यता
जिला - जयपुर
नदी - बाणगंगा
समय - 600 ईसा पुर्व से 1 ईस्वी
काल - लौह युगीन
खोजकत्र्ता/ उत्खनन कर्ता - 1935 - 36 दयाराम साहनी
प्रमुख स्थल - बीजक की पहाड़ी, भीम की डुंगरी, महादेव जी डुंगरी
विशेषता
1. महाजन पद संस्कृति के साक्ष्य(600 ईसा पुर्व से 322 ईसा पुर्व तक)
मत्स्य जनपद की राजधानी - विराटनगर
(मत्स्य जनपद - जयपुर, अलवर, भरतपुर)
विराटनगर - बैराठ का प्राचीन नाम है।
2. महाभारत संस्कृति के साक्ष्य
पाण्डुओं ने अपने 1 वर्ष का अज्ञातवास विराटनगर के राजा विराट के यहां व्यतित किया था।
3. बौद्धधर्म के साक्ष्य मिले हैं।
बैराठ से हमें एक गोलाकार बौद्ध मठ मिला है।
4. मौर्य संस्कृति के साक्ष्य मिले हैं।
मौर्य समाज - 322 ईसा पुर्व से 184 ईसा पुर्व
सम्राट अशोक का भाब्रु शिलालेख बैराठ से मिला है।
भाब्रु शिलालेख की खोज - 1837 कैप्टन बर्ट
इसकी भाषा - प्राकृत भाषा
लिपी - ब्राह्मणी
वर्तमान में भाब्रु शिलालेख कोलकत्ता के संग्रहालय में सुरक्षित है।
5. हिन्द - युनानी संस्कृति के साक्ष्य मिले है।
यहां से 36 चांदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं 36 में से 28 सिक्के हिन्द - युनानी राजाओं के है। 28 में से 16 सिक्के मिनेण्डर राजा(प्रसिद्ध हिन्द - युनानी राजा) के मिले हैं।
शेष 8 सिक्के प्राचीन भारत के सिक्के आहत(पंचमार्क) है।
नोट - भारत में सोने के सिक्के हिन्द - युनानी राजाओं ने चलाये थे।
तथ्य
पाषाण काल - 5 लाख ईसा पुर्व से 4000 ईसा पुर्व
ताम्र पाषाण काल - 4000 ईसा पुर्व - 1000 ईसा पुर्व
लौह युग - 1000 ईसा पुर्व से वर्तमान तक


बैराठ सभ्यता
  • प्राचीन काल में भारत में 16 महाजनपद थे। राजस्थान से संबंधित 2 महाजनद - (1) मत्स्य महाजनपद - राजस्थानी (विराट नगर) इसी विराट नगर को आधुनिक बैराठ के नाम से जाना जाता है।
  • सूरशेन महाजनपद - राजधानी (मथुरा)।
  • बैराठ में उत्खनन कार्य निम्न पहाड़ियों पर किया गया। इन पहाड़ियों को स्थानीय भाषा में डूँगरी कहा गया है।
(1) बीजन पहाड़ी              (2) महादेव पहाड़ी
(3) भीम पहाड़ी               (4) गणेश/मोती पहाड़ी
  • महाभारत काल का संबंध बैराठ से रहा है। पाण्डवों ने अज्ञातवास का कुछ समय बैराठ में व्यतीत किया। भीमलत तालाब का संबंध भी पाण्डवों से ही माना जाता है। भीम पहाड़ी से पाषाण के शस्त्र बनाने के कारखाने प्राप्त हुए है।
  • बैराठ से बड़ी मात्रा में शैल चित्र के प्रमाण प्राप्त हुए है। इसलिए बैराठ को "प्राचीन युग की चित्रशाला भी कहा गया है।"
  • बैराठ की बीजक पहाड़ी से कैप्टन बर्ट के द्वारा मौर्य शासक अशोक का भाब्रु का शिलालेख खोजा। इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि अशोक बौद्ध धर्म की अनुयायी था।
  • शिलालेख की भाषा- प्राकृत एवं लिपि - बाह्मी है।
  • कार्लाइल के द्वारा मौर्य शासक अशोक का एक अन्य शिलालेख खोजा गया। वर्तमान में यह दोनों शिलालेख कलकत्ता संग्राहलय में सुरक्षित है।
  • बौद्ध धर्म से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए 634 ई. में चीनी यात्री हेवनसांग बैराठ ह्वेनसांग को यहाँ पर बौद्ध मठ के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। यह साक्ष्य भग्नावेश अवस्था (जर्जर अवस्था) में थे। इस अवस्था के लिए ह्वेनसांग हूण शासक मिहिर कुल को जिम्मेदार मानता है।
  • ह्वेनसांग की पुस्तक का नाम सी-यू-की है।
  • यहाँ से एक सूती कपड़े में बंधी हुई 36 मुद्राएँ प्राप्त हुई है। इनमें से 28 मुद्राएँ प्राप्त हुई है। इनमें से 28 मुद्राएँ इण्डोग्रीक शासकों की व 8 मुद्राएँ आहत व पंचमार्क मुद्राए थी।
  • जयपुर के शासक रामसिंह द्वितीय के समय बैराठ में खुदाई कार्य करवाया गया। जिसमें एक स्वर्ण मंजूषा (पेटी) प्राप्त हुई है। इस मंजूषा में महात्मा बुद्ध के अवशेष मिले है।
  • मुगल शासक अकबर ने बैराठ में सिक्के ढालने की टकसाल का निर्माण करवाया है। इस टकसाल में जहाँगीर व शाँहजहा ने सिक्कों का निर्माण करवाया है।
  • अकबर व आमेर के शासक भारमल की प्रथम भेंट बैराठ नामक स्थान पर ही हुई।

राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ - आहड़ की सभ्यता (RPSC 1st व 2nd Grede exam)

राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ -  आहड़ की सभ्यता



स्थान -  आहड़ (उदयपुर)
नदी  -   आयड़ (आगे नाम बेडच)
खोज -   1. अक्षय कीर्ति व्यास - 1953
            2.  रतन चन्द्र अग्रवाल - 1954 - 56
उत्खनन/ खुदाई :- एच.डी. सांकलिया - 1961
उपनाम - बनास की सभ्यता

समय - 1900 ईसा पुर्व से 1200 ईसा पुर्व

काल - ताम्र पाषाण काल
सबसे अधिक उत्खनन करवाया 1961 में एच. डी.(हंसमुख धीरजलाल) सांकलिया ने।आहड़ का प्राचीन नाम - ताम्रवती10 या 11 शताब्दी में इसे आघाटपुर/आघाट दुर्ग कहते थे।स्थानीय नाम - धुलकोरविशेषताभवन निर्माण में पत्थर का प्रयोगउत्खनन में अनाज पिसने की चक्की मिली है।कपड़ों में छपाई किये जाने वाले छापे के साक्ष्य मिले हैं।छः तांबे के सिक्के मिले हैं।यहां से एक भवन में छः मिट्टी के चुल्हे मिले हैं।मिट्टी के बर्तन व तांबे के आभुषण मिले है।



  • इस सभ्यता को - बनास संस्कृति, ताम्रवति नगरी, आधारपुर, धूलकोट, आद्याटपुर संस्कृति आदि अन्य नाम से भी जाना जाता है।
  • आहड़ में तांबे के साथ-साथ पाषाण के उपकरण भी मिले है। इसलिए इस सभ्यता को ताम्रपाषाण कालीन सभ्यता कहा जाता है।
  • यह सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी यहाँ के लोगों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि व पशुपालन था। यहाँ के प्रमुख उद्योग- तांबे के औजार का निर्माण।
  • यहाँ से नारी की मूर्ति, तांबे की चूड़ियाँ, छल्ले व मनके मिले हैं।
  • एक मकान में 4 व 6 चूल्हें के प्रमाण प्राप्त हुए है, जो संयुक्त परिवार को इंगित करता है।
  • यहाँ से प्राप्त मृदभाण्डों का रंग लाल-काला, काला व लाल था।
  • यहाँ ताँबे की 6 मुद्राएँ मिली है। एक मुद्रा के ऊपर यूनान के देवता अपोलो का चित्र मिला है। यह मुद्रा प्रथम शताब्दी ई. पू. से तीसरी शताब्दी ई. पू. की मानी जाती है।
  • आहड़ में शवों को आभूषण सहित दफनाते थे एवं शवों का सिर उत्तर दिशा में रखकर दफनाया जाता था।

Tuesday, 27 March 2018

राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ - कालीबंगा की सभ्यता

       

                      राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ

1. कालीबंगा की सभ्यता :-

                              स्थान     -  हनुमानगढ़ (राजस्थान)
                    नदी       -  घग्घर नदी (प्राचीन नाम - सरस्वती/दृषद्वति)
                    खोज     -  अमलानंद घोष (सन् 1951- 53 /1952)
                    उत्खनन -    सन् 1961- 69 में
                                   1.  डॉ. B.V. लाल
                                   2.  डॉ. बी.के. थापर
                                   3.  डॉ. एम. डी. खरे
                              काल/समय :-   2300-1750 BC./ईं. पू
                                          वर्तमान से 4318 वर्ष पहले/पूर्व
   उपनाम :-     सिंधु सभ्यता की तीसरी राजधानी- डॉ. दसरथ शर्मा के अनुसार
   कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ :-  काली चूड़ियाँ
                                                    



विशेषतायें :-

1.  कालीबंगा सिंधु सभ्यता  का एक नगर था । जिसके निर्माता द्रविड़ माने जाते      है।

2.  यह आद्य युगीन सभ्यता है । तथा ताम्र पाषाण के अंतर्गत आती है ।
3.  यह एक कांस्य युगीन सभ्यता हैं ।यहाँ समाज मातृसत्तात्मक था ।
4.  सिंधु सभ्यता की प्रमुख विशेषता नगर नियोजन प्रणाली थी । जिसमें सड़कें        चोड़ी  जो एक दूसरे को समकोण पर काटती थी । जिसे ग्रीड पद्दति/चौपड़         पैटर्न कहा जाता है ।
5.  वर्तमान भारत का जयपुर व चंडीगढ़ नगर इसी ग्रीड / चौपड़ पैटर्न पर               आधारित है ।
6.  कालीबंगा की खुदाई का कार्य 5 चरणों में किया गया -
      1,2, चरण में  - प्राक् हड़प्पा सभ्यता - 5000 वर्ष पूर्व की - ग्राम्य
      3,4,5 चरण में - हड़प्पा सभ्यता - 4300 वर्ष पूर्व - नगरीय 
7.  जूते हुये खेत व एक साथ दो फसलें उगाने के प्रमाण प्राक् हड़प्पा सभ्यता से       संबंधित हैं ।
8.  कालीबंगा से प्राप्त गढ़ी क्षेत्र (राजभवन) व नगर क्षेत्र दोनों अलग-अलग             परकोटे से घिरे हुए थे ।
9.  कालीबंगा से प्राप्त भवन कच्ची ईंटो से निर्मित थे जो धुप में पकाई गई थी।10. जल निकासी के लिए नालियों की व्यवस्था थी जो पक्की ईंटो व लकड़ी की       बनी होती थी ।
11. यहाँ से काली चूड़ियों के टुकड़े, तंदूरनुमा चूले, अग्निवेदियाँ तथा मकानों में         कवेलू व सीढ़ियाँ भी प्राप्त हुई हैं ।
12. यहाँ से सतरंज व चौसठ खेल की मोहरें ,हाथी दाँत की कंघी ,ऊँट की हड्डियां        व भूकंप के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
13 . यहाँ से अंडाकार कब्रें व युग्म शवदान प्राप्त हुए हैं ।


14. यहाँ से कपास के अवशेष प्राप्त हुए है जिसे यूनानी भाषा में सिंडन कहा            जाता हैं ।
15 . यहाँ से मेसोपोटामियां (ईराक) की बेलनाकार मोहरें प्राप्त हुई हैं, अर्थात            इनका व्यापार सुमेरियन वासियों के साथ था ।
16. यहाँ से 9 वर्षीय बालक की छिद्रित खोपड़ी प्राप्त हुई है जो शल्य चिकित्सा          का प्रमाण हैं ।
17.  यहाँ से वृषभाकृति की ताम्र प्रतिमा प्राप्त हुई है जो धातु प्रतिमा का                   प्राचीनतम उदहारण हैं ।जो राजस्थान की प्राचीनतम प्रतिमा हैं ।

18. यहाँ से प्राप्त मुद्रा पर व्याघ्र (शेर) का चित्र अंकित है जो शेरखड़ी या पक्की        मिट्टी से निर्मित थे ।
19. संस्कृत साहित्य में कालीबंगा को "बहुधान्यकटक" कहा गया हैं तथा यहाँ से        जौ व गेहूँ के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
20. यहाँ से प्राप्त मृदभांडों पर सिंधु लिपि के प्रमाण है जिसे आज दिन तक पढ़ा        नहीं गया । यह भाव चित्राक्षर लिपि हैं ,जो दायें से बायें लिखी जाती हैं ।
21. डॉ. बी. वी. लाल ने सिंधुलिपि को "ब्रुस्टोफेदम" नाम दिया ।

Note- 

1 . गिलूंड (राजसमंद) से सिंधु लिपि के प्रमाण प्राप्त हुए हैं ।
2.  बरोर गाँव गंगानगर से हड़प्पा सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुये हैं ।
3. सोथी बीकानेर को कालीबंगा प्रथम कहा जाता है ।
4. पीलीबंगा (हनुमानगढ़) से हडप्पा सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
5. हल ही में हनुमानगढ़ जिले की भादरा तहसील के करनपुरा से कालीबंगा के        समकालीन अवशेष प्राप्त हुये हैं ।